श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा | brihaspati Dev Ji Vrat Katha
प्राचीन समय की बात है – एक बड़ा प्रतापी तथा दानी राजा था । वह प्रत्येक गुरुवार को व्रत रखता एवं पूजा करता था । यह उसकी रानी को अच्छा न लगता । न वह व्रत करती और न ही किसी को एक पैसा दान में देती । राजा को भी ऐसा करने से मना किया करती । एक समय की बात है कि राजा शिकार खेलने वन को चले गए । घर पर रानी और दासी थी । उस समय गुरु वृहस्पति साधु का रुप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए । साधु ने रानी से भिक्षा मांगी तो वह कहने लगी , हे साधु महाराज । मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूँ । आप कोई ऐसा उपाय बताएं , जिससे यह सारा धन नष्ट हो जाये और मैं आराम से रह सकूं । साधु रुपी वृहस्पति देव ने कहा , हे देवी । तुम बड़ी विचित्र हो । संतान और धन से भी को ई दुखी होता है , अगर तुम्हारे पास धन अधिक है तो इसे शुभ कार्यों में लगा ओ , जिससे तुम्हारे दोनों लोक सुधरें । ...